बकरीद की कुर्बानी
बकरीद, एक ऐसा त्योहार जिसकी पृष्ठभूमि ही कुर्बानी है। इस त्योहार में अल्लाह की राह में अपनी सबसे अजीज वस्तु कुर्बान करने की परंपरा है। हज़रत इब्राहिम, जिसने अल्लाह की राह में अपने बेटे की कुर्बानी दी थी और तभी से इस त्योहार की परम्परा चली आ रही है। लेकिन समझ नहीं आता क्या आपकी सबसे अजीज वस्तु ये निरीह और मूक पशु ही हैं। साल भर तो कभी नहीं देखा। चलो मान भी लिया, तो फिर कहाँ गए वो सगे-संबंधी, माँ-बाप, भाई-बहन और वो बाबु-सोना। अगर प्यार उन पशुओं से था तो इनसे क्या था। अरे भाई! जब हज़रत इब्राहिम ने क़ुरबानी दी तो वो अल्लाह का हुक्म था और उन्होंने अपने बेटे के गले पर छुरी चलाई तो थी लेकिन उनका बेटा बगल में जिंदा खड़ा था और उसकी जगह पर एक दुम्बा ( बकरे के जैसा एक प्रकार का जानवर) कटा पड़ा था। आज अपने बेटे की कुर्बानी दे दो या बाप की कोई फर्क़ नहीं पड़ता जनाब। नेकी नेक कामों से मिलती है कुर्बानी से नहीं। आपके लिए हर्ष की बात यह है कि मैं अल्लाह से ज्यादा आपसे प्रेम करता हूँ, अल्लाह से करता तो मेरे हाथों में अभी कलम की बजाय आपके गले पर गंडासा रखा होता। ये मेरे व्यक्तिगत विचार...